Class 11 Hindi Antra NCERT Solutions for Chapter 6 2021

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 6

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NCERT Solutions Class 11 Hindi Antra Chapter 6

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Ch 6

 

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NCERT Solutions Class 11 Hindi Antra Chapter 6

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NCERT answers for class 11 Hindi Antra chapter 6 include a variety of instructive examples to aid students in understanding and learning. The examples above are from the CBSE syllabus for class 11.

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1.जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन कैसा बीता?

जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन दहशत तथा अदृश्य डर में बीता था। सभी इस डर में जी रहे थे कि न जाने कब सूबेसिंह आएगा और फिर मार-पिटाई का दौर चल पड़ेगा।

2.’ईंटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-पिट जैसे मन में पसरी दुश्चिंताओं और तकलीफ़ों की प्रतिध्वनियाँ थीं जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।’ – यह वाक्य मानो की किस मनोस्थिति को उजागर करता है

यह वाक्य मानो के मन की दुविधाग्रस्त तथा कष्ट की स्थिति को दर्शाता है। मानो सदैव अपने भविष्य के लिए चिंतित रहती थी। वह सदैव अनिश्चितता, कष्ट तथा तकलीफों के बारे में सोचती रहती थी। ये बातें उसके मन में विद्यमान थीं। जैसे जलती लकड़ियों के मध्य चिट-पिट की आवाज़ होती है, वैसे ही उसके मन में उठने वाली अनिश्चितता, कष्ट तथा तकलीफें धीरे-धीरे उभरती रहती थीं। ये सभी उसके मन में छोटे रूप में विद्यमान थीं। वे अभी तक ज्वाला का रूप धारण नहीं कर पाई थी।

3.मानो अभी तक भट्ठे की ज़िंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी?

मानो एक किसान परिवार से थी। वह पहले अपने मालिक स्वयं थे। अपने लिए कमाते थे। किसी के पास मज़दूरी नहीं करते थे। बदहवाली के कारण उसे गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने के लिए आना पड़ा था। अपने पति सुकिया के कारण उसे भट्ठे में काम करना पड़ रहा था। भट्ठे का माहौल उसे पसंद नहीं था। शाम ढलते ही वहाँ का वातावरण काट खाने को आ रहा हो, ऐसा लगता था। वह इस माहौल में घबराने लगती थी। यही कारण था कि यहाँ के जीवन से संबंध स्थापित नहीं कर पा रही थी।

4.’खुद के हाथ पथी ईंटों का रंग ही बदल गया था। उस दिन ईंटों को देखते-देखते मानो के मन में बिजली की तरह एक ख्याल कौंधा था।’ वह क्या ख्याल था जो मानो के मन में बिजली की तरह कौंधा? इस संदर्भ में सुकिया के साथ हुए उसके वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखिए।

खुद के हाथ से पथी ईंटों का रंग बदला हुआ देखकर मानो के मन में इन्हीं पक्की ईंटों से घर बनाने का ख्याल आया। यह सोचकर उसे नींद नहीं आ रही थी। अब वह भी चाहती थी कि ऐसी ही पक्की ईंटों से उसका अपना छोटा-सा घर हो। सुबह जब मानो ने उसे उठाया तो उससे चुप न रहा गया।
मानोः क्या हम इन पक्की ईंटों से अपने लिए एक घर बना सकते हैं?
सुकियाः (हैरानपूर्वक) पगली दो-चार पैसे से पक्की ईंटों का घर नहीं बनता है। इसके लिए हमें बहुत-सा पैसा चाहिए।
मानोः (भोलेपन से) दूसरों के लिए जब हम ईंटें बनाते हैं, तो अपने घर के लिए भी ईंटें बना सकते हैं।
सुकियाः (समझाते हुए) हम भट्ठे के मालिक के लिए काम करते हैं। ये सब ईंटें उसकी हैं।
मानोः (दुखी होकर) हम बहुत मेहनत करेंगे और पैसे जोड़कर अपने लिए घर बनाएँगें। इसके लिए हम रात-दिन मेहनत करेंगे।
सुकियाः अच्छा ठीक है। ऐसा ही करेंगे।
दोनों को जीवन का उद्देश्य मिल गया था।

5.असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबे सिंह क्यों बिफर पड़ा और जसदेव को मारने का क्या कारण था?

सूबे सिंह की मानो पर बुरी नज़र थी। अतः उसने असगर ठेकेदार को मानो को बुलाने के लिए कहा। जब असगर ठेकेदार ने यह बात मानो तथा सुकिया को कही, तो सुकिया क्रोधित हो उठा। स्थिति भाँपकर जसदेव ने फैसला किया कि वह मानो के स्थान पर सूबे सिंह के पास जाएगा। जब सूबे सिंह ने देखा कि मानो नहीं आई है और उसके स्थान पर जसदेव आया है, तो वह बिफर पड़ा। मानो का सारा गुस्सा उसने जसदेव पर निकाल दिया। उसने जसदेव को बहुत बुरी तरह मारा।

6.’सुकिया ने मानो की आँखों से बहते तेज़ अँधड़ों को देखा और उनकी किरकिराहट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के टूट जाने की आवाज़ उसके कानों को फाड़ रही थी।’- प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित खानाबदोश रचना से ली गई हैं। मानो और सुकिया सब भुलाकर अपना पक्का घर बनाने के सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं। सूबेसिंह के गंदे इरादे उनकी राह में रोड़े अटकाना आरंभ कर देते हैं। वह किसी भी कीमत में मानो को हासिल करना चाहता है। अतः वे दोनों पति-पत्नी को परेशान करने के लिए नए-नए बहाने ढूँढ़ता है। आखिर एक दिन वह उनकी हिम्मत तोड़ने में सफल हो जाता है।

व्याख्या- मानो जब रात को बनाई अपनी ईंटों की दुर्दशा देखती है, तो ज़ोर-ज़ोर के रोने लगती है। वे पति-पत्नी बहुत प्रयास करते हैं। सूबेसिंह हर बार उस पर पानी फेर देता है। अब उनके सहने की सीमा समाप्त हो गई है। उनकी बनाई सारी ईंटें तोड़ दी गई हैं। मानो की आँखों से तकलीफ आँसू बनकर गिरने लगती है। हताश मानो को सुकिया रोते हुए देखता है। मानो की आँखों से गिरते हुए आँसुओं को वह तेज़ अँधड़ों के समान देखता है। मानो के हृदय में उठने वाला दर्द, वह अपने ह्दय में महसूस करता है। वह समझ जाता है कि यदि वह यहाँ से नहीं गया, तो जो आगे होगा वह उचित नहीं होगा।

7.’खानाबदोश’ कहानी में आज के समाज की किन-किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।

‘खानाबदोश’ कहानी में आज के समाज की निम्नलिखित समस्याओं को रेखांकित किया गया है-
(क) किसानों का जीविका चलाने के लिए गाँवों से पलायन।
(ख) मज़दूरों का शोषण तथा नरकीय जीवन।
(ग) जातिवाद तथा भेदभाव भरा जीवन।
(घ) स्त्रियों का शोषण।

लेखक ने प्रस्तुत कहानी में सुकिया और मानो के माध्यम से निम्नलिखित समस्याओं को हमारे समक्ष रखा है। ये ऐसे दो पात्रों की कहानी है, जो भेड़चाल में जीवन नहीं बिताना चाहते हैं। वे समझौता नहीं करते हैं। अपनी मेहनत पर विश्वास करते हैं और समाज के ठेकेदारों को मुँहतोड़ जवाब देते हैं। वे अपनी शर्तों पर जीने के लिए कष्टों तक को गले लगाने से चूकते नहीं हैं।

8.’चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।’ – सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए

इस कथन से सुकिया तथा मानो जैसे लोगों की शोषण भरी जिंदगी का पता चलता है। उन लोगों को पूँजीपतियों के हाथों शोषण का शिकार होना पड़ता है। पूँजीपति वर्ग उन्हें पैसे के ज़ोर पर अपने हाथों की कठपुतलियाँ बनाकर रखना चाहता है। सूबेसिंह जैसे लोग सुकिया तथा मानो जैसे लोगों को चैन से जीने नहीं देते हैं। एक मज़दूर के पास यह अधिकार नहीं होता है कि वह अपने अनुसार जीवन जी सके। वे इनके हाथों सदैव से प्रताड़ित होते आ रहे हैं। इन्हें या तो पूँजीपतियों की नाज़ायज़ माँगों के आगे घूटने टेकने पड़ते हैं या फिर खानाबदोश के समान एक स्थान से दूसरे स्थानों तक भटकना पड़ता है। सुकिया का कथन मज़दूरों की इसी संवेदना को प्रकट करता है

9.निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए- (पृष्ठ संख्या 78)
(क) अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।
(ख) इत्ते ढेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।
(ग) उसे एक घर चाहिए था- पक्की ईंटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।
(घ) फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो…..मेरी खातिर पिटे…..फिर यह बामन म्हारे बीच कहाँ से आ गया….?
(ङ) सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे।

(क) मनुष्य जहाँ पैदा हुआ होता है, वही उसका देश है। वहाँ पर यदि उसे पकवान के स्थान पर साधारण खाना भी मिले, तो वह अच्छा होता है। अभिप्राय है कि जहाँ मनुष्य बचपन से रहता आया है, वहाँ पर जीने के लिए उसे दूसरों की शर्तों पर नहीं चलना पड़ता। वहाँ पर वह मान-सम्मान से जीता है। दूसरे स्थान पर उसे दूसरे मनुष्य की बनाई शर्तों पर जीना पड़ता है। ऐसे भी उसका मान-सम्मान जाता रहता है।
(ख) सुकिया, मानो को कहता है कि घर बनाना आसान काम नहीं है। इसके लिए बहुत सारे नोटों की आवश्यकता होती है। इस समय हमारे पास इतने पैसे नहीं है। हमारी ऐसी ही स्थिति है कि हाथ में पैसा नहीं है और हाथी खरीदने की इच्छा रखते हैं।
(ग) मानो तथा सुकिया मज़दूर थे। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुगियों में रहती थे। मानो के मन में अपना घर बनाने का सपना जन्म लेने लगा था। वह अपने लिए एक पक्का घर चाहती थी। अपने घर में वह अपनी गृहस्थी को आगे बढ़ाना चाहती थी तथा अपने बच्चों के लिए छत चाहती थी।
(घ) मानो, जसदेव को खाना देने जाती है। वह उसके हाथ की बनाई रोटी खाने से मना कर देता है। उसकी यह हिचक निकालने के लिए सुखिया कहती है कि तुम हमारे साथ रात-दिन काम करते हो। मुझे बचाने के लिए तुमने मार भी खाई है। ऐसे में जब हम सब एक हो चुके हैं, तो हमारे बीच में जाति कहाँ से आ जाती है। अर्थात तुम ब्राह्मण हो या हम चमार इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। हम अब एक ही हैं।
(ङ) जिस प्रकार काँच के टूटने पर उसके छोटे टुकड़े आँख में जाने से तकलीफ देते हैं, वैसे ही मानो के सपनों टूट कर उसकी आँखों को तकलीफ दे रहे थे। उसने सोचा था कि खूब मेहनत करेगी और पक्की ईंटों का एक छोटा-सा घर बनाएगी। वह सपना टूट कर चकनाचूर हो चूका था। उसके कारण उसकी आँखें रो-रोकर काट रही थीं।

10.नीचे दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
भट्ठे के उठते काले धुएँ ……………. ज़िंदगी का एक पड़ाव था यह भट्ठा।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित कहानी खानाबदोश से ली गई हैं। इसमें भट्ठा छोड़कर जाते मानो तथा सुकिया के हृदय का दुख बयान किया गया है। दोनों सूबेसिंह के अत्याचारों से तंग आकर भट्ठा छोड़ने के लिए विवश हो जाते हैं।
व्याख्या- भट्ठे से काला रंग का धुआँ निकल रहा था। उस धुएँ ने आकाश में काली चादर बिछा दी थी। ऐसा लगता था मानो और सुकिया के आकाश रूपी सपने पर भट्ठे के मालिक सूबेसिंह के अत्याचारों ने पानी फेर दिया है। उसके अत्याचारों के आगे न झूकते हुए दोनों ने भट्ठा छोड़ने का फैसला किया। वहाँ से चलते हुए बहुत देर हो चूकी थी। भट्ठा अब बहुत पीछे छूट गया था। उनकी स्थिति उन खानाबदोशों की तरह थी, जो खाने की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकते रहते थे। उन्हें अब एक घर चाहिए था, जिसमें वे सिर छिपा सकें। अब पीछे याद रह गई थीं। ये वो यादें थीं, जिनमें उनका किया परिश्रम था। उन्हें इस परिश्रम के स्थान पर पुरस्कार मिलना चाहिए था लेकिन आज उन्हें भूला दिया गया था। उन्हें मज़बूर कर दिया गया कि वे अपमानजनक जीवन जिएँ या फिर भट्ठा छोड़कर चले जाएँ। दोनों ने सम्मानपूर्वक जीवन चुना और भट्ठा छोड़ दिया। आज यह भट्ठा उनके खानाबदोश जीवन का पड़ाव मात्र बनकर रह गया था। उन्होंने सोचा था कि वे यहाँ पर अपने जीवन को साकार रूप देंगे पर ऐसा नहीं हुआ। अच्छे जीवन की तलाश में वे आगे चल पड़े।

11.अपने आसपास के क्षेत्र में जाकर ईंटों के भट्ठे को देखिए तथा ईंटें बनाने एवं उन्हें पकाने की प्रकिया का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

सबसे पहले गीली मिट्टी की सहायता से ईटें बनाई तथा सुखाई जाती हैं। जब यह सुख जाती हैं, तो इन्हें ताप में पकाने के लिए हर थोड़ी दूरी पर कच्ची ईंट के समूह को पंक्ति में लगाया जाता है। एक आयताकार स्थान पर फर्श एक या दो फुट गहरा खोदा जाता है। उसके ऊपर जमीन को पाट दिया जाता है। उसके नीचे लकड़ी, कोयले, फूस तथा ज्वलनशील पदार्थ से आग लगा दी जाती है। इसके ऊपर ही सुखाई गई ईटों को छह-सात पंक्तियों में रख दिया जाता है। इसके बाद इन्हें इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वह चारों तरफ से दीवार के समान हो जाती हैं। उनके ऊपर गीली मिट्टी का लेप लगा दिया जाता है। इस प्रकार ऊष्मा के बाहर जाने का रास्ता बंद कर दिया जाता है। आखिर में ज्वलनशील पदार्थ में आग लगा दी जाती है। इन ईंटों के पकने में कम से कम छह सप्ताह का समय लगता है। इसके बाद इन्हें ठंडा किया जाता है। ठंडा करने का समय भी ईंटों के पकने के समय के बराबर ही होता है।

12.भट्ठा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

प्राप्त सूत्रों के अनुसार भट्ठा-मज़दूरों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर होती है। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुग्गियों में रहते हैं। उन्हें प्रतिदिन की दिहाड़ी पर रखा जाता है। औसतन यह दिहानी 350 से लेकर 400 रुपए प्रतिमाह होती है। उनका शोषण किया जाता है और उन्हें 12 घंटे काम करने के बाद भी 12 रुपए प्रतिदिन से लेकर 100 रुपए तक ही मिल पाता है। कह सकते हैं कि उन्हें काम के अनुसार दिहाड़ी नहीं दी जाती है। तमिलनाडू में 30 मई 2016 में छपे समाचार के बाद पता चला कि कई मज़दूरों को तो बंधूआ मज़दूर बनाकर रखा गया था। उन्हें अलग-अलग शहरों से वादे करके लाया गया और बाद में भट्ठा मालिक अपने वादे से हट गया। स्वयंसेवी संस्था तथा सरकार के प्रयास से इन्हें छुड़वाया गया इसमें अधिकतर 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे। इससे पता चलता है कि भट्ठे में काम करने वालों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति बहुत बुरी होती सकती है।

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