2611 समाजशास्त्र by Prof. M. L. Gupta, Dr. D. D. Sharma
Book Summary:
लस्रामाजिक विज्ञानों में समाजशाखर की छोकप्रियता एवं महत्व दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इस विज्ञान में अनेक नवीन अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों का विकास भी हुआ है। अनेक ज्ञोधर्कर्ताओं द्वारा समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसन्धान भी किये गये हैं जिनके परिणामस्वरूप समाजशास्त्रीय ज्ञान में काफी वृद्धि हुई है। आज भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के छिए जो विभिन्न योजनाओं के माध्यम से देश में नियोजित परिवर्तन छाना चाहता है, समाजशाख्त्र के अध्ययन-अध्यापन की विशेष महत्ता है| केवछ आर्थिक नियोजन के माध्यम से देश में व्याप्त सभी समस्याओं को हछ नहीं किया जा सकता। इसके छिए आवश्यक है कि समाणशाखीय दृश्कोण अपनाते हुए सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण किया जाय, कार्य-कारण सम्बन्धों का पता रूगाया जाय, तथ्यों को यथार्थ खूप में चित्रित किया जाय और समस्याओं के निराकरण हेतु नियोजकों एवं प्रशासकों को प्रामाणिक सामग्री उपर्य्ध करायी जाय। इस हेतु सर्वप्रथम समाजज्ञास्र की प्रमुख अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों ते भली-मांति परिचित होना नितान्त आवश्यक है। इनको समझकर ही भारतीय सामाजिक संरथना में होने वाछे महत्वपूर्ण प्ररियर्तनों का पत्ता छगाया जा सकता है और उन्हीं के अनुरूप नियोजन को दिशा दी जा सकती है। यह कार्य समाजशास्त्र उसी समय उत्तमत्ा के साध कर सकता है जब स्रमाज की प्रकृति, उसके विभिन्न आधारों तथा एकीकरण एवं पृथक््करण करने याल्ी सामाजिक प्रक्रियाओं को सही रूप में समझा जाय। प्रस्तुत पुस्तक इसी दिज्ञा में एक प्रयास है।
Audience of the Book :
This book Useful for Sociology Students.