भारतीय ग्रंथों में कहा गया है—‘चरैवेति, चरैवेति’—अर्थात् चलते रहो, चलते रहो। गौतम बुद्ध ने भी कहा—‘चरथ भिक्खवे, चरथ’—अर्थात् भिक्षुओ चलते रहो। चलने को ही हमारे यहाँ जीवन माना गया है। कहते हैं, जल यदि बहता नहीं है, एक ही स्थान पर रुक जाता है तो सड़ने लगता है। जीवन के बारे में भी हमारे आदि गं्रथों में कहा गया है कि यदि व्यक्ति चले नहीं तो उसके होने की किसी प्रकार की सार्थकता नहीं है। चलने का अर्थ यात्रा से है। ऐसी यात्रा से, जो आपको किसी मंजिल पर ले जाती है। विचारशून्य व्यक्ति की क्या समाज में कोई हैसियत होती है? नहीं न। इसका अर्थ हुआ, विचार भी चलता है, उसकी गति होती है। गति होगी तो मंजिल भी होगी और मंजिल तय करने के लिए यात्रा करना जरूरी है। शायद इसीलिए हमारे यहाँ ‘चरैवेति, चरैवेति’ कहा गया। इसी ‘चरैवेति’ ने मनुष्य को यात्रा करने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए शायद यात्रा को जीवन का अविच्छिन्न अंग माना गया है। जैविक विकास के आधार पर यात्रा के विकास की गणना की जाए तो इस बात से भला कोई कैसे इनकार कर सकता है कि जीव की उत्पत्ति की प्रारंभिक अवस्था से लेकर पूर्ण विकसित मानव की स्थिति तक पहुँचने के क्रम में भी यात्रा जीवन के साथ चलती रहती है।
विकास की गति के साथ यात्रा का स्वरूप, अर्थ और उद्देश्य बदलता रहा है। सामान्य अर्थ में यात्रा से आशय एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है। तीर्थ, ज्ञान, व्यापार, शिक्षा, मनोरंजन आदि उद्देश्यों से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने की परंपरा आदिकाल से चलती आई है। इसी परंपरा ने देशाटन की सोच को विकसित किया। जैसे-जैसे मानवीय सोच का विस्तार होता गया, यात्रा-वृत्ति को विकसित एवं परिवर्तित करते हुए ‘पर्यटन’ का नया रूप दिया जाने लगा।
भारतीय संदर्भ में बात करें तो इस बात से भला कोई कैसे इनकार कर सकता है कि देशाटन सदैव से ही हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। देशाटन ने शनैः-शनैः पर्यटन का जो रूप ग्रहण किया, उसने यात्रा की हमारी पुरानी परंपरा को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। आज पर्यटन का अर्थ सैर-सपाटे तक ही सीमित नहीं है। यह महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि, संस्कृति से जुड़ी ऐसी क्रिया है जिससे स्वस्थ मनोरंजन तथा पारस्परिक एकता व सद्भाव को बढ़ावा मिलता है। पर्यटन से न केवल मनुष्य की जानकारियों का दायरा विस्तृत होता है बल्कि अब यह उसके सर्वांगीण विकास का माध्यम बन चुका है।
आधुनिक समय में पर्यटन एक विस्तृत विचार बन रहा है। देशाटन से प्रारंभ हुए पर्यटन के मायने अब बदल चुके हैं। अब यह ज्ञान, नई चीजों के बारे में पता लगाने, मनोरंजन, व्यापार आदि का रूप ले चुका है। मनुष्य की सदा से ही जिज्ञासा रही है कि वह उस स्थान विशेष के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करे, जिसके बारे में उसने सुना या पढ़ा है। उसकी इसी जिज्ञासा ने उसे अपने स्थान से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया। कहते हैं, सन् 1292 में पहले-पहल ‘टूअर’ शब्द का प्रयोग हुआ, जो लैटिन शब्द ‘टोरनस’ से बना है, जिसका अर्थ प्रारंभ में ‘वृत्तात्मक’ उपकरण या स्थिति से लगाया जाता था। इसी शब्द से धीरे-धीरे ‘टूरिस्ट’ एवं ‘टूरिज्म’ शब्द की उत्पत्ति हुई।
संस्कृत साहित्य में पर्यटन के लिए तीन शब्दों का प्रयोग किया गया है। ये तीन शब्द हैं—पर्यटन, देशाटन और तीर्थाटन। इन तीन शब्दों के अर्थ में ही पर्यटन की अवधारणा अंतर्निहित है। प्रथम शब्द है—पर्यटन अर्थात् आराम एवं ज्ञान-प्राप्ति के लिए यात्रा करना। दूसरा शब्द है—देशाटन अर्थात् विदेशों में, मुख्यतः आर्थिक लाभ के लिए यात्रा करना और तीसरा प्रमुख शब्द है—तीर्थाटन अर्थात् धार्मिक लाभ के लिए यात्रा करना।
भारत आस्था का देश है। धार्मिक आस्था यहाँ पर्यटन की संवाहक रही है। वर्षों पहले जब आवागमन के साधनों का विकास नहीं हुआ था, लोग धार्मिक आस्थावश दुर्गम तीर्थ-स्थलों पर जाया करते थे। इस बहाने निवास-स्थल से दूर के स्थानों की यात्रा तो हो ही जाती थी, साथ ही रास्ते में पड़नेवाले इलाकों की सभ्यता व संस्कृति से साक्षात्कार भी हो जाता था। तीर्थ-स्थलों का अलग-अलग दिशाओं में होना इस बात को भी पुष्ट करता है कि इनकी स्थापना के पीछे मनुष्य को अपने निवास-स्थान के अतिरिक्त दूसरे स्थानों से अवगत कराने के साथ घर से बाहर की दुनिया को देखने का अवसर दिलाना रहा है। दरअसल पर्यटन एक व्यापक शब्द है, जिसमें विभिन्न शारीरिक, मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति निहित है। साथ ही व्यक्ति का विकास भी जुड़ा हुआ है।
पर्यटन के अंतर्गत आज नए-नए क्षेत्रों का विकास हुआ है और घूमने-फिरने की अवधारणा ने अब एक व्यापक स्वरूप धारण कर लिया है। आज देश, राज्य और स्थानीय विकास की अवधारणा में इसे सम्मिलित कर लिया गया है। समग्र रूप से कहा जाए तो पर्यटन एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक गतिविधि है, जो आज के समय की आवश्यकता है। यह बिना चिमनी और धुएँ का ऐसा उद्योग है जो लोगों को स्थान विशेष की तरफ आकर्षित करने, उन्हें वहाँ तक पहुँचाने, आवासित करने, खाने-पीने की सामग्री प्रदान करने, उनका मनोरंजन करने तथा वापसी में उन्हें उनके घर पहुँचाने से संबंधित है।
अब इसके क्षेत्र का अत्यधिक विस्तार हुआ है। आज से दो-तीन दशक पहले तक पर्यटन कुछ समृद्ध, धनी एवं साहसिक व्यक्तियों तक ही सीमित था; परंतु परिवहन एवं संचार के साधनों के तीव्रतम विकास से अब यह हर आम और खास के लिए समान पहुँच का क्षेत्र हो गया है। पर्यटन की सोच का विस्तार इस कदर हुआ है कि मध्यम एवं कुछ हद तक निम्न आय के लोग भी अब अपने निवास-स्थान से बाहर भ्रमण एवं अवकाश व्यतीत करने जाने लगे हैं। वित्तीय संस्थाओं और बड़ी-बड़ी यात्रा एजेंसियों द्वारा पर्यटन पैकेज भी तैयार किए जाने लगे हैं। इनसे सभी प्रकार का पर्यटन सुगम ही नहीं हुआ है बल्कि आम आदमी की इस तक पहुँच भी हो गई है। पर्यटन अब अनेक रूप ले चुका है। सांस्कृतिक, चिकित्सा, धार्मिक, पारिस्थितिकी, साहसिक, क्रीड़ा, ग्रामीण आदि अनेक रूपों में पर्यटन ने आज वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बना ली है।
पर्यटन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है कि इससे बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। परंतु समग्र सत्य मात्र यही नहीं है। पर्यटन दरअसल सामुदायिक विकास को बढ़ावा तो देता ही है, साथ ही यह व्यक्ति के समग्र विकास का भी आधार है।
आज पर्यटन सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय बन गया है और शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी समझा जाने लगा है। भौतिक कार्यों की व्यस्तता और आपाधापी में कुछ पल आराम के निकालने के अंतर्गत पर्यटन मनुष्य की आवश्यकता भी बनने लगा है।
जैसे-जैसे पर्यटन की सोच का विकास हुआ है, इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं यथा आवास, भोजन, परिवहन आदि व्यवसायों का भी विकास त्वरित गति से होने लगा है। आम तौर पर पर्यटन एवं यात्रा को एक ही मान लिया जाता है, जबकि इन दोनों में मूलभूत अंतर है। यात्रा का उद्देश्य व्यवसाय या अन्य कुछ भी हो सकता है; परंतु पर्यटन का अर्थ है मनोरंजन, ज्ञानवर्धन, नया देखने की जिज्ञासा को शांत करने के लिए भ्रमण। पर्यटन बिना स्कूल गए व्यक्ति को ज्ञान प्रदान करने के साथ ही अपने परिवेश से अलग लोगों की संस्कृति, परंपराओं, मान्यताओं, खान-पान आदि के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियाँ भी देता है।
मोटे तौर पर पर्यटन की परिभाषा पर विचार करें तो लगातार एक वर्ष या उससे कम समय तक सैर-सपाटा, व्यापार तथा अन्य कार्यों के लिए अपने रहने के सामान्य स्थान से बाहर घूमने तथा ठहरनेवाले व्यक्तियों से जुड़ी गतिविधियों को ‘पर्यटन’ कहा जा सकता है।
यह तो स्पष्ट ही है कि पर्यटन की अवधारणा कोई नई नहीं है बल्कि सैकड़ों वर्ष पुरानी है। परंतु आज अब देश-विदेश की यात्रा से संबंधित विभिन्न संघटकों के कार्य-कलापों का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विनियमन होता है तो पर्यटन के विभिन्न पहलुओं के बारे में सूचनाओं के एकीकरण, सारणीयन और प्रचार के लिए इस शब्द को परिभाषित करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
‘पर्यटन’ शब्द के बारे में हम चर्चा करें तो पाएँगे कि अंग्रेजी शब्द ‘Tourism’ का संबंध ‘Tour’ से है। ‘Tour’ शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है। इसे यात्रा के लिए प्रयोग करने के पीछे महत्त्वपूर्ण कारण छिपा हुआ है। ‘Tornos’ का अभिधात्मक अर्थ एक प्रकार के औजार से है, जो पहिए की भाँति गोलाकार होता है। इसी ‘Tornos’ शब्द से यात्रा-चक्र या ‘Package Tour’ या कहें कि एकमुश्त यात्रा का विचार सृजित हुआ, जो कि आधुनिक पर्यटन का मुख्य आधार है। शब्दानुसंधान से पता चलता है कि करीब सन् 1643 में इस शब्द का प्रयोग विभिन्न स्थानों की यात्रा, मनोरंजन, भ्रमण आदि के लिए किया गया था। यहाँ यह बात भी अत्यंत रोचक है कि ‘Tour’ हिब्रू भाषा का शब्द है, जो कि ‘Torah’ से लिया गया है। इसका अर्थ है—अध्ययन या खोज। ‘Torah’ यहूदियों के विधान से संबंधित है। यहूदी विधान यहूदियों के रहन-सहन की परिभाषा वर्णित करता है। इस कड़ी में ‘Tour’ का अर्थ है कि यात्री किसी विशेष स्थान पर जाकर खोज करता है। ठीक इसी प्रकार एक पर्यटक की जिज्ञासा होती है कि वह उस स्थान के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सके, जिसके बारे में उसने सुना है।
‘Tourism’ या ‘पर्यटन’ शब्द के अंतर्गत समस्त व्यापारिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जो यात्रियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। किसी भी यात्रा को पर्यटन तब कहा जाएगा जब—
• यात्रा अस्थायी हो।
• यात्रा ऐच्छिक हो।
• यात्रा का अर्थ किसी प्रकार का पारिश्रमिक प्राप्त करना नहीं हो।
‘पर्यटन’ शब्द के विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पर्यटन केवल यात्रा तक सीमित शब्द नहीं बल्कि एक विस्तृत शब्द है। अठारहवीं सदी में पर्यटकों की बढ़ती हुई संख्या ने पर्यटन के वर्तमान स्वरूप को जन्म दिया। उन्नीसवीं सदी तक विद्वानों ने इसे एक व्यवसाय के रूप में बढ़ाने की बात सोची। विदेशी पूँजी अर्जित करने का यह एक उत्तम व्यवसाय दृष्टिगोचर हो रहा था। बीसवीं सदी तक पहुँचते-पहुँचते यह व्यवसाय यूरोप में अत्यधिक लोकप्रिय व प्रभावपूर्ण सिद्ध होने लगा। फलतः बहुत से देशों ने इसे अपना प्रमुख व्यवसाय बनाना प्रारंभ कर दिया।
पर्यटन और यात्रा में पर्याप्त अंतर है। पर्यटन को साधारण यात्रा नहीं कहा जा सकता। मनुष्य की आराम, विनोद, क्रीड़ा व सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए पर्यटन ने जिस सामाजिक आंदोलन का रूप ग्रहण किया है, उसको सही अर्थों में परिभाषित किया जाना बेहद जरूरी हो जाता है।
विद्वानों ने पर्यटन को भिन्न-भिन्न अर्थों में व्याख्यायित किया है। सबसे पहले यह देखना होगा कि पर्यटन और यात्रा में मौलिक अंतर क्या है। इस संबंध में जेरास्ना मांद्रथ कहते हैं—‘यात्रा, तीर्थयात्रा, सैर-सपाटे और पर्यटन में फर्क है। पर्यटन घूमने-फिरने की एक आधुनिक शैली है और इसके विकास के लिए सबसे पहले आधुनिक मानसिकता का होना जरूरी है। तीर्थयात्रा अपने मूल में पारंपरिक है और सही अर्थों में पर्यटन से उसका बहुत ज्यादा सरोकार नहीं है। एक तीर्थयात्री अपने किसी अभीष्ट को ध्यान में रखकर, शुद्ध आचरण, निष्ठा, भक्तिभाव से लक्ष्य तक पहुँच, उसके दर्शनों से तृप्त होकर घर लौटता है। एक बार भगवान् के दर्शन हो जाएँ तो वह मार्ग की कठिनाइयों को भी भूल बैठता है। लेकिन एक पर्यटक को अगर यह पता चल जाए कि अमुक जगह पहुँचने में कोई दिक्कत होगी तो वह वहाँ जाएगा ही नहीं। पर्यटक एक तीर्थस्थान तक भी जा सकता है; लेकिन किसी भक्तिभाव से नहीं, केवल देखने के लिए। पर्यटक शहरी तनाव दूर करने, सुख की तलाश में, आपाधापी और दौड़-धूप भरी जिंदगी में राहत की साँस लेने, गरमी के थपेड़ों से छुटकारा पाने पहाड़ की ओर भागेगा, कुछ दिन वहाँ रहेगा, वहाँ के जन-जीवन में कुछ नएपन की तलाश करेगा या फिर प्रकृति के सान्निध्य में शांति और समरसता पाकर संतोष की साँस लेगा।’
मार्क ट्वेन पर्यटन को बदलाव का बेहतरीन साधन बताते हुए इसे मानवीय नियति से भी जोड़ते हैं। उनके अनुसार—‘स्वर्ग भी थोड़े समय बाद उबाऊ बन जाता है। स्तरीय जिंदगी बिताने के लिए बदलाव बेहद जरूरी है और पर्यटन इसका साधन है।’
प्री माउंट के अनुसार, ‘पर्यटन का अर्थ समस्त मानवीय क्रियाओं के क्षेत्र तथा समस्त प्राकृतिक पहलुओं में जिज्ञासा रखना या खोज करना है।’ माउंट की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि पर्यटन मनुष्य के भीतर की जिज्ञासा को शांत करने की एक प्रक्रिया है।
डॉ. जेभिडिड्न के मतानुसार, ‘पर्यटन एक सामाजिक आंदोलन है, जिससे आराम, विनोद, क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।’
पर्यटन को सामाजिक आंदोलन बताने के साथ ही इस परिभाषा में पर्यटन को व्यक्ति के विश्राम से जोड़ते हुए उसकी ज्ञान संबंधी आवश्यकता की पूर्ति का माध्यम भी बताया गया है। स्पष्ट है कि पर्यटन समाज की ऐसी क्रिया है, जिससे सभी स्तरों पर व्यक्ति को लाभ होता है।
शोधकर्ता एरिक लॉस के अनुसार, ‘पर्यटन लोगों में सूझ-बूझ और सांस्कृतिक विनिमय के सेतु का निर्माता है।’
लीग ऑफ नेशंस ने पर्यटन को परिभाषित करते हुए कहा है—‘पर्यटन एक सामाजिक क्रिया है, जिसमें व्यक्ति चौबीस घंटे से ज्यादा समय के लिए अन्यत्र यात्रा करता है।’
इस परिभाषा को अत्यधिक सीमित ही कहा जाएगा, क्योंकि इसमें पर्यटन को यात्रा तक ही सीमित किया गया है।
टूरिज्म सोसाइटी ऑफ ब्रिटेन के अनुसार, ‘पर्यटन अपने निवास-स्थान से दूरस्थ स्थानों की अस्थायी व अल्पकालिक यात्रा है, जहाँ लोग तरह-तरह के क्रियाकलापों द्वारा मनोरंजन करते हैं।’
विश्व पर्यटन संगठन (WTO) ने पर्यटन को ‘व्यक्तियों की सावकाश, कारोबार या अन्य प्रयोजनों से एक वर्ष से कम अवधि के लिए उनके सामान्य परिवेश से अलग किसी स्थान की यात्रा या ठहराव से संबंधित कार्यकलाप’ के रूप में परिभाषित किया है। इसमें अंतरराष्ट्रीय एवं घरेलू पर्यटन दोनों सम्मिलित हैं।
विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद् (WTTC) के अनुसार, ‘पर्यटन यात्रियों के उपयोग के लिए उत्पादनों एवं सेवाओं को प्रस्तुत करता है।’
इन परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कहा जा सकता है कि पर्यटन देश-विदेश की भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक जानकारी के आदान-प्रदान की ऐसी क्रिया है जिससे भिन्न-भिन्न लोगों से मेल-मिलाप ही नहीं होता बल्कि व्यक्ति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा ज्ञान भी प्राप्त होता है, जो अन्य किसी स्रोत से नहीं मिल सकता। सड़क एवं रेल यातायात के प्रादुर्भाव के साथ सोलहवीं सदी में पर्यटन विकास को काफी गति मिली। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सड़क, हवाई यातायात तथा संचार साधनों के विकास से पर्यटन अत्यधिक समृद्ध हुआ। पर्यटन किसी भी राष्ट्र के लिए न केवल महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्रिया है बल्कि विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में सांस्कृतिक परिवर्तन लाने का विशिष्ट माध्यम भी है।
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि जो पर्यटन करता है वही पर्यटक है। इस रूप में पर्यटन और पर्यटक का परस्पर पूरक संबंध है। सामान्य तौर पर स्वीकार्य परिभाषा के अनुसार पर्यटक वे अस्थायी आगंतुक हैं, जो कम-से-कम एक रात्रि के लिए यात्रा करनेवाले देश में ठहरते हैं तथा जिनकी यात्रा का उद्देश्य विलासिता (मनोरंजन), अवकाश, स्वास्थ्य-लाभ, अध्ययन, क्रीड़ा, व्यापार व पारिवारिक मेलजोल आदि से संबंधित होता है।
‘यूनिवर्स शब्दकोश’ के अनुसार—‘पर्यटक’ शब्द का प्रयोग सन् 1876 से भी पहले से किया जाता रहा है। इसके अनुसार, ‘पर्यटक वह व्यक्ति है जो जानकारी हासिल करने तथा मनोरंजन करने के लिए यात्रा करता है, ताकि अन्य व्यक्तियों को अपनी यात्रा का विवरण दे सके।’
अर्थशास्त्री एवं पर्यटक लेखक नोरमल के अनुसार, ‘प्रत्येक वह व्यक्ति जो विदेशों में स्थायी रूप में निवासित होने या रोजगार की दृष्टि के अलावा अन्य कारणों से प्रवेश करता है तथा जो अपने अस्थायी ठहराव के दौरान इस देश में अपने अर्जित धन को व्यय करना चाहता है, पर्यटक कहलाता है।’
इस प्रकार कहा जा सकता है कि पर्यटन का अर्थ केवल आराम, मनोरंजन तथा आनंद तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अंतर्गत व्यापार संबंधी यात्राएँ एवं अन्य समस्त किस्म की यात्राएँ सम्मिलित हैं, जिनका वेतन-युक्त रोजगार से कोई संबंध नहीं है।
‘यात्रा विलासिता नहीं, बल्कि व्यापार की आवश्यकता है और सभी लोगों का मूल अधिकार है।’ पर्यटन के संदर्भ में विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद् का यह कथन दरअसल पर्यटन और पर्यटक के निरंतर व्यापक होते स्वरूप की ओर इंगित करता है।
पर्यटन के बढ़ते हुए महत्त्व को इस बात से ही समझा जा सकता है कि अब यह व्यक्ति के अधिकार का विषय बन गया है। वर्ष 1980 में फिलीपींस की राजधानी मनीला में विश्व पर्यटन संगठन द्वारा आयोजित सम्मेलन की उद्घोषणा में कहा गया कि पर्यटन का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन-स्तर को बढ़ाना है। यह व्यक्ति को बेहतर जीवन-शैली प्रदान करता है। सम्मेलन में पर्यटन को व्यक्ति का अधिकार बताते हुए प्रत्येक राष्ट्र के लिए इसे परम आवश्यक गतिविधि तक बताया गया। दरअसल पर्यटन का विकास राष्ट्रों के सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। पर्यटन को मानव को संतोष प्रदान करनेवाली गतिविधि के रूप में स्वीकार करते हुए कहा गया है कि पर्यटन से होनेवाला आर्थिक लाभ कितना ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण क्यों न हो, राष्ट्रों को इसे प्रोत्साहन देते समय केवल इस लाभ को ही अपने निर्णय की कसौटी नहीं बनाना चाहिए, बल्कि अवकाश व्यतीत करने का मानवीय अधिकार, नागरिकों को अपने पर्यावरण के संबंध में जानकारी-प्राप्ति के अवसर, राष्ट्रीय एकता और अभिन्नता के बारे में समझ विकसित करने के महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में कार्यान्वित करना चाहिए।
कुल मिलाकर पर्यटन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसे किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। इस क्षेत्र के अंतर्गत आम तौर पर जिन तत्त्वों की चर्चा की जाती है, वे इस प्रकार से हैं—
पर्यटक—पर्यटन के प्रमुख तत्त्व पर्यटक ही हैं। इस गतिविधि की सुखद अनुभूति का उपभोग पर्यटक ही करते हैं। इस रूप में पर्यटक इस व्यवसाय के उपभोक्ता हैं। पर्यटकों में वे सभी लोग सम्मिलित होते हैं, जो अल्प समय के लिए अपने निवास-स्थान से बाहर घूमने-फिरने के लिए जाते हैं। उनके घूमने-फिरने का उद्देश्य आराम, स्वास्थ्य-लाभ, शिक्षा, मनोरंजन, कुछ समय के लिए घर से निकासी आदि कुछ भी हो सकता है। उम्र, व्यक्तित्व एवं शैक्षिक स्तर के अनुसार पर्यटकों के व्यवहार में विविधता पाई जाती है। इसी विविधता को ध्यान में रखते हुए पर्यटन के उत्पादों का निर्माण होता है। विविध रुचियों के पर्यटकों की सेवाओं एवं माँग के अनुरूप पर्यटन स्थलों के विकास को लाभदायक बनाने तथा नकारात्मक तत्त्वों को नियंत्रित करने में मदद ली जाती है।
पर्यटक उत्पादक स्थल—पर्यटकों द्वारा पसंद किए जानेवाले स्थान धीरे-धीरे पर्यटक उत्पादक स्थल बन जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि जहाँ पर्यटकों की माँग का बाजार बनता है वहाँ उन सेवाओं और माँग का उत्पादन होने लगता है।
पर्यटक माँग—पर्यटन व्यवस्था का निर्धारण माँग पर आधारित है। इस माँग आधारित व्यवस्था में स्थानीय निवासियों की अपेक्षा के साथ बाहर से आनेवाले पर्यटकों की संतुष्टि को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है। पर्यटन माँग निर्धारण के तहत पर्यटन स्थलों के आकर्षण के साथ-साथ वहाँ पहुँचने की हवाई, सड़क यातायात की बेहतर व्यवस्था, मुद्रा विनिमय, वीजा, सुरक्षित माहौल, घूमने की आजादी, खरीदारी के लिए बेहतर व्यवस्थाओं आदि का होना नितांत आवश्यक है। माँग निर्धारण को अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखे जाने से काफी हद तक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। पर्यटन ही एकमात्र ऐसा उद्योग है, जिससे न केवल बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है बल्कि स्थानीय रोजगार को भी बढ़ावा मिलता है। ज्यादा-से-ज्यादा पर्यटक किसी देश में कैसे आएँ, इसके लिए पर्यटन माँग का निर्धारण करनेवाले तत्त्वों पर ध्यान देना आवश्यक है।
पर्यटन उत्पाद और सेवाएँ—पर्यटन के अंतर्गत ‘उत्पाद’ और ‘सेवा’ जैसे शब्द बार-बार आते हैं। पर्यटन उत्पाद का अर्थ है—पर्यटकों द्वारा पर्यटन स्थलों पर उपयोग में ली जानेवाली वस्तुएँ। ये वस्तुएँ प्रत्यक्ष भी हो सकती हैं और अप्रत्यक्ष भी। जैसे—पर्यटक प्रत्यक्षतः भौतिक वस्तुओं के अलावा अप्रत्यक्ष रूप से एक नए माहौल, परिवेश, पर्यावरण, विरासत, वहाँ की संस्कृति से संबद्ध वस्तुओं आदि को भी क्रय करता है। इससे स्पष्ट है कि भौतिक वस्तुओं के साथ-साथ पर्यटन उत्पाद में मनोवैज्ञानिक संरचना भी सम्मिलित होती है। स्थान विशेष के हस्तशिल्प, विशिष्ट वस्तु की खरीद के साथ ही उस पर्यटन स्थल पर बार-बार जाने की चाह भी कालांतर में उस स्थान विशेष के पर्यटन उत्पाद में सम्मिलित हो जाती है। इसी प्रकार पर्यटन स्थल पर पर्यटकों को मिलनेवाली विभिन्न प्रकार की सुविधाओं जैसे—होटल, टैक्सी, गाइड आदि को पर्यटन की सेवाओं में सम्मिलित किया जाता है। यहाँ यह गौरतलब है कि पर्यटन में माँग सदैव स्थिर नहीं रहती, क्योंकि पर्यटकों की रुचि और प्रवृत्ति में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। पर्यटन सेवाओं के निर्माण में समय लगता है। होटल और परिवहन जैसी सेवाएँ एक बार स्थापना के बाद लंबे समय तक कायम रहती हैं। उत्पादक को एक बार इन सेवाओं के लिए निवेश करना पड़ता है, बाद में इनसे लाभ होने लगता है।
पर्यटन का अर्थ निरंतर विस्तृत से विस्तृत होता जा रहा है। आज यह विश्व अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख घटक बन गया है। पारंपरिक पर्यटन के स्थान पर पर्यटन अब रोमांच, साहस और जीवन की विविध गतिविधियों से गहरे तक जुड़ गया है। मसलन यदि विवाह भी होता है तो उसका भी एक पर्यटन रूप बन गया है। विवाह समारोह में शामिल होने के बहाने भी व्यक्ति पर्यटन करने लगा है। यहाँ तक कि स्वास्थ्य-लाभ के साथ भी पर्यटन जुड़ गया है। भौतिकता के इस दौर में जितना भी समय व्यक्ति के पास होता है, उसी में वह बहुत कुछ कर लेना चाहता है। ऐसे में ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण, संगीत, कला, धार्मिक-सांस्कृतिक आदि उद्देश्यों से की जानेवाली यात्राएँ तक पर्यटन से जुड़ गई हैं। पर्यटन को अब आर्थिक दृष्टि से एक लाभकारी उद्योग मान लिया गया है। स्पष्ट है कि अब हर जगह, हर समय पर्यटक की जेब पर ही नजर रहने लगी है। कोई व्यक्ति कौन सी गतिविधि करता है, उसी के साथ पर्यटन को जोड़ दिया जाने लगा है। कोई आस्था के वशीभूत कहीं जाता है तो वह धार्मिक पर्यटन हो जाता है, विवाह समारोह में सम्मिलत होने जाता है तो भी उसे पर्यटन पैकेज पकड़ा दिया जाता है, कोई साहस या रोमांच की अनुभूति करना चाहता है तो तैयार है साहसिक पर्यटन, गाँव की सैर करना चाहता है तो प्रस्तुत है ग्रामीण पर्यटन, समुद्र की सैर की उसकी चाह है तो तैयार है क्रूज पर्यटन, प्राचीन चट्टानों और भूमि को जैसी है वैसी देखने की उसकी चाह है तो भू-पर्यटन का नया रूप भी प्रस्तुत है। वैज्ञानिक प्रगति के साथ यह भी संभव है कि अंतरिक्ष में होटल खुलें और वहाँ भी पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो। अस्तु, ‘चरैवेति, चरैवेति’ का प्राचीन भारतीय आदर्श आज पर्यटन के क्षेत्र का मूल-मंत्र बन गया है। अब तो अंतरिक्ष की सैर के लिए भी अंतरिक्ष पर्यटन का विकास किया जा रहा है।