भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं। भारत की सांस्कृतिक विशेषता पूरे विश्व द्वारा प्रशंसित है। किसी भी देश व समाज की जीवंतता और पहचान उसकी अपनी संस्कृति से ही होती है। भारत की भाँति दीर्घ सांस्कृतिक नैरंतर्य से संपन्न देश इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। बेबीलोनिया और मेसोपोटामिया जैसी संस्कृतियाँ प्राचीन तो अवश्य रही हैं, किंतु आज वे विस्मृत हो चुकी हैं। जबकि भारत में आज भी हजारों वर्ष पूर्व वैदिक व पौराणिक ग्रंथों में रचित श्लोकों का पाठ मौखिक रूप से किया जाता है।
भारतीय संस्कृति को समझने के लिए आवश्यक है कि इसके मर्म को समझा जाए। संस्कृति उस संपूर्ण संसृष्टि को कहते हैं, जिसके अंतर्गत व्यक्ति ज्ञान, विश्वास, कला, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताओं और आदतों को अर्जित करता है। हमारी संस्कृति, परंपराएँ एवं संस्कार हमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में मिले हैं।
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से लेखक ने संस्कृति के हर क्षेत्र से ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी सुधी पाठकों तक पहुँचाने का निष्ठ प्रयास किया है। ग्रंथ एवं रचयिता; अंकों का महत्त्व; नाम कैसे पड़ा; महापुरुष, आदर्श नारियाँ, देवी-देवता, प्रतीक; संस्कार, योग, वेद, स्मृति, दर्शन एवं अन्य ग्रंथ; स्थल, नदियाँ एवं जीव-जंतु; महत्त्वपूर्ण तिथियाँ, दिवस, पक्ष, माह तथा व्रत; अस्त्र-शस्त्र एवं अवतार; उपनाम, उपाधियाँ एवं सम्मान; और भी बहुत कुछ—आदि शीर्षकों के माध्यम से ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’ की रचना की गई है।
‘रामायण’ और ‘महाभारत’ तो स्वयं में एक ग्रंथ हैं, इनसे संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रंथ के पन्ने पलटे जा सकते हैं और उनका उत्तर उसमें मिल भी जाएगा; किंतु सांस्कृतिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए कोई एक निश्चित ग्रंथ नहीं है, जिसमें संबंधित प्रश्नों की जानकारी मिल सके। पाठकों की इसी आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए राजेंद्रजी ने मात्र एक हजार प्रश्नों के माध्यम से विशाल सांस्कृतिक ज्ञान-सागर का प्रदर्श कराया है, जो बहुत ज्ञानप्रद है।
सामान्यतया लोग बच्चों के जन्म के बाद नामकरण, मुंडन और यज्ञोपवीत आदि संस्कार ही करते हैं और इनसे संबंधित जानकारी रखते हैं, किंतु ‘1000 भारतीय संस्कृति प्रश्नोत्तरी’ के माध्यम से जन्म के बाद के और भी कई महत्त्वपूर्ण संस्कारों की विस्तार से जानकारी दी गई है, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी; जैसे—बाल काटने के पहले, जन्म के चार महीने बाद सूर्य-दर्शन कराए जाने, छठे माह में बच्चे को उसी तरह का अन्न खिलाना जैसा उसका स्वभाव बनाना चाहते हों, कानों की एक विशेष नाड़ी का छेदन, शिक्षा आरंभ करने आदि के समय कौन सा संस्कार आयोजित होता है आदि-आदि।
संस्कृति अपने स्वरूप में सागर की भाँति होती है। इससे संबंधित क्षेत्र की जानकारी प्राप्त करना श्रमसाध्य और समयसाध्य होता है; किंतु लेखक ने असाधारण अन्वेषण-कार्य करते हुए उस ज्ञान-सागर को पुस्तक रूपी गागर में भरने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक में अल्प समय में ही भारतीय संस्कृति से संबंधित व्यापक और विशिष्ट जानकारियाँ अपने पाठकों को उपलब्ध करवाने का लेखकीय प्रयास सार्थक हुआ है।
—अवध किशोर सिंह
(हिंदी विभाग)
एन.सी.ई.आर.टी.
1 जनवरी, 2007
गली नं.-9 ए, सबोली
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